Page 33 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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जंगलरीफू ल
िुझको जंगलरी फ ू ल पसंि हैं, जो संघषमाशरील िूप िें डटें हों ।
जो दखलदखलाकर हंसते हैं । दजनके कांटें िुभ जाए शूल से,
दजनिें तह़िरीब नहीं होतरी, जो यहां वहां जहां सब ओर उगे हों ।
दसलदसलेवार उगने की तिरी़ि नहीं होतरी, जो जरीदवत जंगल के ठहाकों िें पले हों ।
वो सवच्ंि िहकते हैं । उन्हें ़िरुरत नहीं खाि, पानरी, िालरी
उन्हें इंत़िार नहीं, वो बस उग रहे हैं, घने, ििमानाक, अंिेरे
दकसरी कोिल हार्ों िें पहुंि िुसक ु राने का । जंगल की गोि िें, िुसक ु राते
या दकसरी िहकते गजरे िें लग जाने का । बस, िुझे वहरी पसंि हैं ।
वो बस सने होते हैं दिट्री िें, जंगल के बरीिों बरीि,
उन्हें इंत़िार होता है, बाररश िें भरीग जाने का । सूरज की रोशनरी पाकर,
वो टूट कर भरी हवा के झोंके के सार्, जो आंखें बंि कर, ठंडरी गिमा हवाओं िें
आसिान िें उड़ते िलते हैं । बस खुशबुएं दबखेरते हैं ।
नशें के सार् ला सको तो वहरी फ ू ल लाना िेरे दलए,
वहरी फ ू ल, िैं उन्हें बस दनहारना िाहतरी हूं ।
जो कतारों से ना लगे हों, दक कोई िुझ सा भरी है यहां,
दजनकें िुंह, गुिसुि से ना उठे हों, तुमहें यहरी बताना िाहतरी हूं ।
दजनिें कांटे भरी क्रिबधि ना हों,
जो तोड़े जाने के दलए ना बनें हों ।
िुझे जंगलरी फ ू ल पसंि हैं, कववता क ृ षणारिली
जो हवा िें खुशबू दबखेरते हों, अधयादपका
आतमववश्वास और कड़ली मेहनत असफ्ता नामक बलीमारली को, मारने के
व्ए सबसे बवियाां िवाई है, ये आपको एक सफ् आिमली बनातली है।
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