Page 32 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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सुकू न ऐ जजंदगरी                                      मंजजल आएगरी






              िल ऐ दजंिगरी आज सुक ू न के  पल दबताते हैं ।                  जरीवन की िररया िें लहरें,
              क ु ् तू अपनरी कहे, क ु ् हि अपनरी बताते हैं ।               सुख िुख की आतरी जातरी हैं,

                  बहुत र्कतरी है, यह दजंिगरी हर पल ,                       लहरों से डर कर रुकना नहीं,
               िल इस पल को र्ोड़ा सुक ू न से दबताते हैं ।                      पटवार िलाते जाएंगे,

               दकससे कहानरी सुनाते हैं, क ु ् ििमा बताते हैं ।                  िंदजल आएगरी ।
             वह इतवार लेकर आते हैं । िाय की गरि िुसकी,

                       गरि पकोड़े सार् लाते हैं ।                            िींटरी से हिने सरीखा है,
              िल ए दजंिगरी आज सुक ू न के  पल दबताते हैं ।                 दगरकर, उठना, उठकर िलना,

                वह सावन के  झले, वो िेलों की हलिल ,                         िेहनत से आगे बढ़ना है ।
                              ू
           वो िाट, वो आइसक्रीि के  ठेले, िोबारा ले आते हैं ।                 दहमित ना हारने पाएगरी,

              वह िोसतों की गपशप, वह आंगन की बाररश ,                           पटवार िलाते जाएंगे,
                िोहलले की बातें, वो िोबारा ले आते हैं ।                         िंदजल आएगरी ।

            तू भरी र्क गई होगरी, ऐ दजंिगरी, िुझे सताते सताते,
                    िल िोनों की र्कान दिटाते हैं ।                       रुककर लहरों को दगनना नहीं,

              िल ऐ दजंिगरी, आज सुक ू न के  पल दबताते हैं ।                  हिको तो आगे बढ़ना है ।
                दिल की िड़कनों को दफर से गुनगुनाते हैं ।                      तूफानों से जो डरते हैं ,

                िल जवानरी के  दकससे िोबारा िोहराते हैं ।                   िुदशकल उनकों हो जाएगरी,
            सक ू ल की दकताबें, वो िटके  का पानरी, वो घंटरी दफर               पटवार िलाते जाएंगे ,

                              बजाते हैं ।                                       िंदजल आएगरी ।
           वो िािरी नानरी की कहानरी, िल दफर से हि सुनते हैं ,

               वह बिपन की पतंग, दफर से हि उड़ाते हैं ।                      जरीवन की िररया िें लहरें,
               वो दटदफन के  पराठे, अिार िजे से खाते हैं ।                  सुख िुख की आतरी जातरी है,

                       िल वो पल सिेट लाते हैं                              लहरों से डरकर रुकना नहीं,
              िल ऐ दजंिगरी, आज सुक ू न के  पल दबताते हैं ।                    पटवार िलाते जाएंगे,

                                                                                िंदजल आएगरी ।

                                     कम्ेर क ु मारली माहौर

                                            नदसिंग अदिकाररी                                              सररता
                                                                                                     अधयादपका





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