Page 38 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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सत्यमेि जयरे, उदघोष करो किरे






                                            सवच्ता हरी सेवा, संकलप करो कहते
                              आओ आओ सतयिेव जयते से सवच्ता हरी सेवा की ओर िले हि,

                                      हररत क्रांदत से सवच्ता क्रांदत की ओर बढ़े किि
                          सरीने पर गोलरी खाकर नहीं, तो हार् िें झाड़ ़ू  लेकर सहरी िेश की सेवा करें हि,

                      िेश का खोया अदभिान लौटा कर, उसे किरे की नहीं सोने की दिदड़या कहलाये हि ।
                                        िैं िैं तू तू करते करते, कयूँ ना एक हो जाये हि,

                            िेश की गलरी-गलरी, क ू िा-क ू िा, बाग-बगरीिा कयूँ ना दिल ििकाये हि ।
                                  गंगा हो या यिुना हो दिलकर इन्हें दफर से दनिमाल बनाये हि,

                                        जलरीय जरीवों को भरी जरीवनिान दिलवायें हि ।
                                        हररी-भररी िरा हो, घर घर ये संिेश फैलाएं हि,

                                        पलादसटक को ्ोड़ कपड़ा र्ैला अपनायें हि ।
                                         क ू ड़ा क ू ड़ेिान िें डालें किरे को दनपटायें हि,

                                             इस िेश को अपना घर बनायें हि ।
                                 हर घर िें शौिालय बना कर बहू बेटरी का समिान लौटायें हि,

                                        जन जन को सवच्ता का िहतव सिझायें हि ।



                                    इस रंग दबरंगे दतरंगे के  िेश िें वायु को सवच् बनायें हि
                                     आने वालरी परीदढ़यों को सवच् आसिाँ िे जायें हि ।

                                  क ू ड़ा किरा गटर साफ करने वाले को िेखते हो हरीन ऩिर से,
                                      आओ उन्हीं की तरह सचिे िेशभक्त बन जायें हि,

                    िंदिर िदस़िि गुरुद्ारा दगऱिाघर इनको भरी तो साँफ रखते हो, यहाँ कयूँ नहीं पान र्ूकते हि ।
                     आओं हर जात पात से ऊपर उठकर िेश को सवच् बनायें सचिे दहंिुसतानरी कहलायें हि ।

                            किि से किि दिलाकर जब िेश का बचिा बचिा झाड़ ़ू  लेकर दनकलेगा,
                                  तब सवच्ता हरी िेश सेवा का नारा िहूँ दिशाओं िें गूँजेगा ।

                               बाह्य सवच्ता के  संग संग तन िन की सवच्ता को अपनायें हि,
                                शुधि सुदृढ़ िानदसकता हो सबकी एक िूजे का सार् दनभायें हि,

                                 िन किमा और विन की शुधिता को जरीवन का धयेय बनायें हि ।
                                                                                                      नेहा सैनली,

                                                                                                     अधयादपका


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