Page 37 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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ज़िनदगरी का सफ़र प्रारःकालरीन सवमधाष् !
द़िंिगरी का सफर, बहुत हरी खास है, सभरी िें एक सरी आतरी नहीं दकरिार की खुशबू ।
कभरी खुदशयों की बहार, कभरी गि ए उिास है । अलग आनंि िेतरी है भले वयवहार की खुशबू ।
है फलसफा कभरी, कभरी जरीने की आस है, भरोसा किमा पर दजनकों लगन िंद़िल को पाने की,
सपनों से िूर, हकीकत के बहुत पास है ।
दिले हर काियाबरी िें सपना साकार की खुशबू ।
कभरी िुखों का अंिेरा, कभरी खुदशयों का उजाला है, फ़क़त परवाह अपनरी क ु दसमायों की है दसयासत को,
हर दकसरी ने अपने सुख िुःख को, खुि हरी संभाला है । उसे तो िादहए कै से भरी हो सरकार की खुशबू ।
गर दिल जाए जरीवन िें सचिा हिरा़ि, दजए जो िेश की खादतर शहाित भरी दजन्होंने िरी,
द़िंिगरी िें दफर हर ओर, खुदशयों का उजाला है । फ़लक तक फैलतरी उनकी वतन से पयार की खुशबू ।
र्िा िो िौत का िािन िुहबबत कब जुिा होतरी,
कभरी है तका़िा, तो कभरी सब्र है द़िंिगरी,
कभरी अफसाना तो कभरी कशिकश है द़िंिगरी । बिन िोनों से आतरी इशक़ के इक़रार की खुशबू ।
हैं इसिें न जाने दकतने हरी रंग शादिल, दलखा करते दिटाते दफर दलखें वो नाि दिट्री पर,
कभरी तसववुर तो कभरी सि का एहसास है द़िंिगरी । अजब होतरी है िरीवानों के इन इसरार की खुशबू ।
सबक़ िरअसल िें 'ििमा' सरीखो क ु ् बु़िुगयों से,
कभरी जहन्नुि, कभरी जन्नत का ख़वाब है द़िंिगरी, अगर नायाब रखनरी है ग़़िल अशआर की खुशबू । ।
कांटे ह़िार, कभरी फ ू लों का बाग है ये द़िंिगरी ।
है इसिें अगर ररशतों की गिामाहट का एहसास,
तो बहुत हरी खास और दिल के पास है द़िंिगरी ।
वरव रांकर रमा्ष
सलीमा मोरधवज वररठि सदिवालय सहायक, संयुक्त कर दनिामारण
अधयादपका एवं सिाहतामा, िदक्षण क्षेरि
नजफगढ़ जोन
अगर वकसली िेर को भ्रष्ाचार मुक्त और सुांिर मन वा्े ्ोंगों का, िेर
बनाना है तो मेरा दृि मानना है वक समाज के तलीन प्रमुख ्ोग यह कर
सकते है- माता, वपता और गुरू
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