Page 31 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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मजदर की किानरी उसरी की जुबानरी
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िजबूर हूं िैं र्ोड़ा सा इसदलए िजिूर कहाता हूं मेरे और आपके
पैसा होता जो र्ोड़ा सा िजिूररी कौन करा पाता
हर िजिूर का सपना होता है बेटे को खूब पढ़ाउंगा वदल की बार!
िजिूररी नहरी कराउंगा, अफसर उसे बनाउंगा
िार पैसे अदिक किाने िे, सपने को भूल िैं जाता हूं
इसदलए सक ू ल की जगह उसे िजिूररी पर ले जाता हूं अहले वतन िैं तुझ पे, जरीवन दनसार िूँ!
िजबूररी िें फ ं स जाता हूं, अपने हरी हार्ों बेटे को िजिूररी पर ले जाता हूं लौहू की बूंि-बूंि से, ....तुझको संवार िूँ!!
िजबूररी िें फ ं स जाता हूं, अपने हरी हार्ों बेटे को िजिूर बनाता हूं
िजबूर हूं िैं र्ोड़ा इसदलए िजिूर कहाता हूं हि सांस ले रहे हैं, और दिल िड़क रहा!
िजिूररी से जब घर आता सबको घर पर पाता जब तक रहे ये सांसें, तुझको िैं पयार िूँ!!
पतनरी के हार्ों की गरि-गरि रोदटयां िूलहे की खाता
जब िैं र्क जाता पतनरी को सिझ िें आ जाता िां ने जन्ि दिया है,.... पर तेरा शुदक्रया!
उसकी र्ोड़री सेवा से िैं बचिों के दलए दफर से घोड़ा बन जाता इक जन्ि िरीज कया है, सौ जन्ि वार िूँ!!
र्ोड़री सरी िजिूररी करके सिय से घर िें आ जाता
पैसा होता र्ोड़ा िुझ पर, इससे हरी घर को सवगमा बनाता दसंहों की ये है भूदि, ..तू जननरी िहान है!
यहरी िैं सोिा करता हूं यदि िजिूर नहीं होता तेरे िरण की रज िैं, ...पलको बुहार िूँ!!
तो बड़े-बड़े शहर और कारखाने कौन बना पाता
र्ोड़ा सा पेट दनकल आता, और िैं बरीिाररी का घर बन जाता "बेबाक "िाहता हूँ, नहीं,सवगमा िें जगह!
खाना पिाने और सवास्थय के दलए दफर रोज दजि िे जाता गोिरी िें शरीश रख तेररी, जरीवन गुजार िूं !!
अपनरी पतनरी के हार्ों का खाना भरी नहीं खा पाता
पैसा पास िे होता तो खाना बनाने को कोई बाहर से आता अवनतय नारायण वमश्र
जब िैं आदफस से आता तो घर पर ताला पाता सहायक अनुभाग अदिकाररी
पैसा पास िें हो जाता और पतनरी को दकटरी पाटथी िें पाता राजभाषा दवभाग
िजबूर हूं िै र्ोड़ा सा इसदलए िजिूर कहाता हूं
पैसा होता र्ोड़ा सा तो िजिूररी कौन करा पाता
सुनली् क ु मार (10021798)
पि-बहुआयािरी, दवभाग-साउर् ़िोन,
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