Page 26 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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िर्षमान में विद्ार्थी और उनके जरीिन पर
नैवरक किावनयों का प्रभाि
आज का युग सतत् पररश्ि और प्दतयोदगताओं का युग है । इस आपािापरी के युग िें जरीवन से नैदतक िूलयों
का िहतव क ु ् फीका सा पड़ने लगा है । दवद्ार्थी जरीवन दकसरी भरी िनुषय के सिूिे जरीवन की रूपरेखा दनिामाररत
करने िें सक्षि है । इसरीदलए इस अवसर्ा को सफल जरीवन का आिार भरी िाना गया है । यहाँ दवद्ार्थी ज्ानाजमान के
सार्-सार्, भावनातिक, शाररीररक, िाशमादनक और सािादजक रूप िें भरी दवकदसत होता है ।
िूँदक दवद्ार्थी जरीवन सािना व सिािार पर आिाररत होता है इसदलए क ु ् लक्षणों का दवद्ार्थी िें दवद्िान
होना अदनवायमा हो जाता है दजनका उललेख संसकृत के इस पद्ांश िें दिल जाता है ।
"काक : चेष्ा, बको धयानां, श्वान वनद्रा तथिैव च ।
अलपहारली, गृहतयागली, ववद्ाथिथी पांच्कणम । ।"
ऐसे हरी लक्षणों का दवकास एक राजा के उन्िागमागािरी पुरिों िें करने के अदभप्ाय हेतु िहान दवषणु शिामा जरी ने
पंितंरि जैसरी नरीदतकर्ा का सृजन दकया र्ा । इन पंितंरि की कहादनयों िें िनुषय पारिों के अलावा पशु पदक्षयों को
कर्ा पारि बनाकर कई दशक्षाप्ि सरीख िरी गई हैं । हि िें से अदितक युवा वगमा इन पंितंरि की कहादनयों को पढ़कर
व सुनकर हरी सहज भाव से आिशमा दवद्ार्थी से अपेदक्षत गुणों को पा लेते र्े ।
आज का दवद्ार्थी इन नैदतक कहादनयों से िूररी बनाकर इंटरनेट के जाल िें फ ं सता जा रहा है और जरीवन के
वासतदवक कौशल दसखाने वालरी इन कहादनयों की उपेक्षा करने लगा है । वो भद्े काटूमान दजसिें दशनिैन और नोदबता
जैसे पारि असभय भाषा का प्योग करते हैं, उनके िकड़जाल िें फँस गया है और दिशा भ्रदित होने लगा है और
अपने दनणमाय नहीं ले पा रहा है । अब जब िहूँ ओर तकनरीकी और सूिना का दवसफोटक दवकास हो रहा है, वहाँ
दवद्ादर्मायों के िरररि दनिामाण हेतु नैदतक कहादनयाँ िहतवपूणमा भूदिका दनभातरी हैं । िनोरंजन के सार्-सार्, दवद्ादर्मायों
को सहरी गलत के बरीि का अंतर सिझाकर उनके िरररि का दनिामाण करने वालरी नैदतक कहादनयों का िहतव व
आवशयकता वतमािान युग िें और अदिक अपेदक्षत है । ये के वल दवद्ार्थी के जरीवन को हरी नहीं अदपतु सिूिे सिाज
को सकारातिक दविारों से आतिसात करतरी हैं ।
िनुषय एक सािादजक प्ाणरी है और सािादजक जरीवन की नींव भरी दवद्ार्थी काल िें हरी पड़ जातरी है । जहाँ
ये कहादनयों सिाज के प्दत दजमिेिाररी की भावना से ओत-प्ोत भरी होतरी हैं । दवद्ादर्मायों िें सवेंिनशरीलता और
सहानुभूदत का दवकास इन्हीं कहादनयाँ से संभव हो जाता है ।
आज का दवद्ार्थी हरी कल का संवाहक बनेगा और ऐसे िें यदि वह दिशा भ्रदित रहेगा तो सभय सुलझे सिाज की
कलपना करना असंभव है । ये कहानरी दकताबरी ज्ान के वासतदवक भाव को प्कट करतरी हैं । सचिा दिरि-रु39, िैयमा
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