Page 25 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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िें काफी पररवतमान आया है यहाँ यह बात भरी िान्य है दक ग्रािरीण एवं शहररी पररवेश िें अभरी काफी अंतर है लेदकन

          लगातार होता दवकास शायि इस अंतर को भरी कितर कर िे ।

              भारतवषमा िें लगातार होते नए कायमा, भारत की ्दव को एक नया िोड़ िेते हुए दिखाई िेते हैं । जहाँ एक ओर
          सुनहरे भदवषय की कलपना है वहीं वतमािान िें कई बुझते हुए िरीपक भरी दिखाई पड़ते हैं । दवकास की िािर तो हो परंतु
                                                     ं
          वो िनुषय को िैला न करें । एक ओर लगातार होता दवकास, भारत िाँ की प्कृदत के  सार् दखलवाड़ करता हुआ

          दिखाई पड़ता है वहीं िूसररी ओर दवकास के  अभाव िें दप्ड़ापन दिखाई िेता है । इसके  िाधयि से हि यह आकलन
          कर सकते हैं दक दवकास और संसकार िोनों सिान पहलू पर दविारणरीय होने िादहए जहाँ आिुदनकीकरण के  नाि

          पर भारत िाँ की ्दव के  सार् दखलवाड़ अशोभनरीय है ।

              भारत िेश िें सभरी लोग दशदक्षत हों, तकनरीक का उपयोग जानते हों, कायमाक ु शलता, वयवहारशरीलता, संसकार
          इतयादि सभरी गुण दनदहत हों ऐसरी कािना शायि प्तयेक भारतवासरी करता हो । िैं भरी अपने दविारों िें भारत िेश के

          दलए ऐसरी हरी कलपना करतरी हूँ जहाँ प्तयेक िनुषय दनडर हो, साहसरी हो, दकसरी भरी गलत कायमा के  प्दत सजग हो, अपने
          अदिकारों, अपने संसकार, अपने उतर्ान, अपने पयामावरण, अपने िेश, अपनरी सरकार, अपने प्दत एक दजमिेिाररीपूणमा
          वयवहार रखता हो ।

              भारत िेश िें होने वाले दवकास की रफतार रूकनरी तो नहीं िादहए परंतु पयामावरण की कीित पर नहीं । ऐसा

          पररवतमान जो भारत को भारत हरी ना रहने िें उसकी अदसिता को बिल िे ऐसा पररवतमान सवरीकायमा नहीं है ।

          मेरे सपनों के  भारत में जो गुण होने चावहए वो वनमन प्रकार से हैं

               (क) आवथि्षक ववकास - प्तयेक गाँव और शहर का
               (ख) सामावजक ववकास - जातरीयता अंतर सिाप्त करके

               (ग) राजनलीवतक ववकास - राजनरीदतक गला काट प्दतयोदगता को सिाप्त कर एवं लोकतंरि की अखंडता एवं

          संप्भुता को सर्ादपत करके

               (घ) वैयवक्तक ववकास - वयदक्त सवयं सजग रहे दकसरी के  भरी अदिकारों का हनन न करके , दकसरी अन्य प्ाणरी
          की गररिा को कायि रखते हुए न सवयं गलत सहे और न हरी अन्य के  सार् करे ।

               (्ड.) मवह्ा सरवक्तकरण - आज के  पररवेश िें यह कहना गलत नहीं है दक भारत िेश िें रहने वालरी एवं
          संसार की प्तयेक िदहला को सशक्त करना आवशयक हो गया है । िदहला भरी इस सिाज रूपरी गाड़री का वो पदहया है

          दजसके  दबना गाड़री का संतुलन दबगड़ जाएगा । अतः यह भरी दविारणरीय बात है ।

               (च) पया्षवरण ववकास - जयािा से जयािा पौिों को रोदपत करके पयामावरण को सवच् व सहज बनाकर हि सभरी
          का सुदनयोदजत दवकास सकते हैं । एवं इस िरतरी को रहने योगय सर्ान बने रहने िेने के दलए क्षरीण होतरी ओजोन परत,

          ग्ररीन हाउस गैसों के उतसजमान को रोकने दक दलए केवल पेड़-पौिे एवं हरा-भरा वातावरण कारगर सादबत होगा ।

              िनुषय के  दविार एवं सपने कभरी खति नहीं हो सकते इसदलए िेरे दविार से ऊपर दलदखत िुद्े ििामा के  दवषय
          भरी हैं और भारत वषमा िें इन सभरी गुणों को िारण दकया जा सकता है ।

                                                                                                    पूजा तयागली

                                                                       कदनठि सदिवालय सहायक, संिन एवं सदिदत

                                                                            fuxe vkyksd ¼o"kZ&2024½        25
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