Page 43 - दिल्ली नगर निगम पत्रिका 'निगम आलोक-2024'
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कानिा के प्रेम दोिे राजभाषा-मेरा
अजभमान
काररी तुिररी कािररी ,कारो तुिरो रूप
या ते उदजयारो नहीं, न िांिनरी न िूप ।।
कान्हा तुिररी बंसररी, िरीठरी जाकी तान दहंिरी तुि हो राजभाषा, िातृभूदि की शान,
सुन उड़ जाए वासना, परी्े ्ोड़ जहान ।। हर दिल िें संगरीत सरी गूँजो, जयोंिुरलरी की तान ।
िरीठे तुिरे नैन दपउ, दिसररी की है खान वैज्ादनक आिार तुमहारा, जन-जन की पहिान,
िरीठे सगरे जगत की, िरीठा है क ु रबान ।। तभरी तो गवमा से कहतरी हूँ िैं, राजभाषा-िेरा अदभिान ।
प्ेि उगाउँ प्ेि सौं, प्ेि की डालूँ खाि
प्ेि कटाऊँ प्ेि सौं, प्ेि पाऊँ परसाि ।। सब क ु ् अिूरा तेरे दबन, कया दशक्षा कया दवज्ान,
हो नेता या अदभनेता, करते तेरा गुणगान ।
प्ेि जलाऊँ प्ेि सौं, िरीपक प्ेि सािान
प्ेि बले घृत प्ेि सौं, बातरी प्ेि सािान ।। आज वैदश्वक सतर पर भरी तू िढ़ रहरी नए सोपान,
इसरीदलए तो कहतरी हूँ िैं,राजभाषा-िेरा अदभिान ।
ताना बाना प्ेि सौं, प्ेि ििु लऊँ ्ान
प्ेि ििररया ्ान लौं, प्ेि हरी प्ेि आन ।।
जब हर कोई कर रहा है दहंिरी का बखान,
कान्हा तुिरे प्ेि सौं, प्ेि कलश ्लकाय दफर कयूँ िादखले ह तु तुि, ढूँढो अंग्रेजरी संसर्ान ।
अिृत वषामा प्ेि झरे, अंजुररी लऊँ लगाय ।।
दहंिरी हो कािकाज की भाषा, कहता है संदविान,
बाँका तुिरो रूप है, बाँके दबहाररी रूप दफर यूँ आज भरी कायामालयों िें है अंग्रेजरी दवराजिान ।
रास दबहाररी लाल हो, िरसन दियो अनूप ।।
िरसन तुिरे पाए के , िाये जरी को िैन हर दहंिरी प्ेिरी के िन िें बस हो यह अरिान,
बोलत तुिररी िूरतरी, प्ेि भरे से बैन ।। इन िुनौदतयों का दिलकर हि ढूँढेंगे सिािान,
और बढ़ाएँगे जग िें दहंिरी भाषा की शान,
बैन प्ेि के नैन सौं, काहे ऐसे बोल
प्ेि िुख बस नैन िें, नैन हरी नैन तोल ।। तादक दफर हि कह सके ,राषट्भाषा-हिारा अदभिान ।
कान्हा तुिरे रूप की, ्ब ऐसरी अदभराि
िन के नयनो से दिखे, जागृत िारों िाि ।। वैरा्लीच्ड्ढा
अधयादपका
रवर वकरन
अधयादपका
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